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Showing posts from March, 2016

नारी: ईश्वरीय एहसास

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एहसास खूबसूरती का जब ईश्वर को हुआ, श्रृष्टि निर्माता ने तब ही जन्म स्त्री को दिया। इक एहसास कोमलता का जब हुआ होगा, तब  उसने स्त्री का कोमल हृदय रचा होगा। जग के भूख प्यास की जब हुई होगी चिन्ता, तब उसने माता के आँचल में दूध भरा होगा। जब एहसास कोमल भाव की मन में जागी, ममत्व, स्त्रीत्व, वात्सल्य तब नारी को दिया। धैर्य, संकल्प, सहनशीलता, भंडार ग्यान का, सम्पूर्ण रूपेण नारी को उसने दे दिया होगा। चाँदनी का घमंड तोड़ने को ही शायद उसने, अकथनीय अवर्णनीय सुन्दरता नारी को दी। सुन्दरता को परिभाषित करते करते उसने, नारी रूप की परिकल्पना कर डाली होगी।

अक्सर

अक्सर अन्त:मानस मे एकाकीपन की कसक सी, अंतहीन अन्तर्द्वन्द अक्सर अन्तरआत्मा में पलती, मानस पटल पर अक्सर एक एहसास दम तोड़ती| अक्सर वो एकाकीपन बादल सा घिर आता मन में, दर्द का अंतहीन एहसास अकसर तब होता मन मैं, तप, साधना, योग धरी की धरी रह जाती जीवन में| अक्सर रह जाते ये एहसास अनुत्तरित अनछुए से, अंतहीन अनुभूति लहर बन उठती अक्सर मन से, तब मेरा एकाकीपन अधीर हो कुछ कहता मुझसे|

संध्या जीवन

ढ़ल रहा सांध्य गगन सा जीवन! क्षितिज सुधि स्वप्न रँगीले घन, भीनी सांध्य का सुनहला पन, संध्या का नभ से मूक मिलन, यह अश्रुमती हँसती चितवन! भर लाता ये सासों का समीर, जग से स्मृति के सुगन्ध धीर, सुरभित  हैं जीवन-मृत्यु  तीर, रोमों में पुलकित  कैरव-वन ! आदि-अन्त दोनों अब  मिलते, रजनी दिन परिणय से खिलते, आँसू हिम के सम कण ढ़लते, ध्रुव सा है यह स्मृति का क्षण!

उपेक्षित मन

रखा था मैंनै सहेज कर मन को, उस दरवाजे के पीछे लाल दराज में, जाने कहाँ गुम आज सुबह से वो, दिखाई देता नही क्या नाराज वो? कुछ कहा सुनी हुई नही मन से, जाने किसने छेड़ा आज उस मन को, दुखा होगा शायद दिल उसका भी, पहले तो ना था इतना नासाज वो! कल जब की थी उससे मैने बातें, तब खुश बड़ा दिख रहा था मन वो, आज अचानक है बीती उसपे क्या? बंद पड़ी आज क्यों आवाज वो? मन का हृदय भी होता है शायद! बात चुभी है क्या कोई उसको? या फिर संवेदना जग गई है उसकी! समझ सका नहीं मैं आवाज मन की? जैसे तैसे रख छोड़ा था मैंने उसको ही, लाल दराज के कोने मे दरवाजे के पीछे ही, सुध मैने ही ली नही कभी उसकी, उपेक्षा मेरे ही हाथों से हुई आज मन की? ओह ये क्या? मन तो यहीं पड़ा है! तकिए के नीचे शायद कुचल गया वो, आवाज रूंध चुकी है थोड़ी उसकी, कम हो रही रफ्तार मन के सांसों की! मन तो है मतवाला करता अपने मन की, मन की ना सुनो तो ये सुनता कहाँ किसी की, मन दिखलाता आईना आपके जीवन की, विकल होने पहले सुन लो तुम साज इस मन की!